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“इकतरफा प्यार-Valentine contest”

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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ये दिल का खेल भी बड़ा निराला होता है,
जिससे प्यार करता है,
उससे ही कहने से डरता है।

अपनी सारी जिंदगी उसके इंतजार में गुजरता है,
वो तो सोता है,पर खुद रात भर जगता है।

दिल से ही दिल में खुब बातें करता है,
पर जब वो सामने आता है,
तो कुछ भी कहने से डरता है।

बस एक झलक जो पा लेता है उसकी,
दिल मोर बगिया में ऐसे नाचता है,
मानों सब कुछ मिल गया हो अब,
कुछ और ना पाने की चाहत रखता है।

पर जुदाई के हर तड़प को यूँ सहता है,
जैसे अग्निपथ को कोई पार करता है।

आँखों में खुब सपने संजोता है,
पर असलियत में ये आँख हरदम रोता है।

कोई कसुर भी तो उसका नहीं होता है,
सारा गुनाह तो बस इन आँखों से होता है।

बिना बताएँ ही ये किसी को,
दिल में यूँ बसा लेता है,
कि हर पल के हर क्षण में,
हर साँस के साथ बस उसे ही महसूस करता है।

अपने दिल की बातें पन्नों में उतारना चाहता है,
पर हर बार नए पन्ने से शुरुआत करता है।

इस वक्त दिल की जो हालत होती है,
वो बस कोई प्यार करने वाला ही जान सकता है।

एकतरफे दिल्लगी की ये दिवानगी,
दिवाने का जुनुन बन जाता है,
बस उसे छुप छुप के देख कर ही,
ये तो अब सुकुन पाता है।

बातों में ओंठ लड़खड़ाता है,
दिलबर से आँखों को चुराता है,
तन्हाईयों में रोज ये गम के ही गीत गाता है।

खुदा के दरबार में भी सर झुकाता है,
उसे पाने को अपना सब कुछ लुटाता है,
पर जिसे चाहता है उसे कुछ ना बताता है।

ये खेल वो खुद ही खेलता है,
और अंत में हार जाता है,
दिल की तड़प तब बढ़ती है,
जब उसे गैर की बाहों में पाता है।

दिल जो ये चोट खाता है,
प्यार से विश्वास उठ जाता है,
पर क्या करे इस एकतरफे प्यार में भी,
वो खुब मजे पाता है………..।

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