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“प्रतीक्षा के पल तुम्हारे-Valentine Contest”

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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प्रतीक्षा के पल तुम्हारे प्रिय,
इतने प्यारे होंगे क्या पता था।

मधुरस साथ तुम्हारा है प्रिय,
हर क्षण,प्रतिपल ह्रदय में घुल कर।

संगीतबद्ध हुआ आत्मा का कण कण,
तेरी सुरीली प्रणय राग सुन कर।

गुँजीत हुआ झंकृत सा ह्रदय स्वर,
गँगा सी पावन नदी सा बहा था।

प्रतीक्षा के पल……….।

मुख ने था छेड़ा उस रात फिर प्रिय,
वो गीत प्रणय का इक अलबेला,
नैनों से बरसा था जो भर जल,
यादों में आया था वो मिलन वेला।

हर क्षण हो मानो सुन रहे थे,
मैने जो तुमसे कुछ कहा था।

प्रतीक्षा के पल……….।

संसर्ग मिलन का होता अनोखा,
प्रतीक्षा के पल बन जाते है सुहाने,
चाँदनी रात में हम दोनों जो छत पे,
ढ़ुँढ़ लेते है फिर मिलने के बहाने।

थम क्यों ना जाते है वो पल,
इक रात में ही तो अपना सारा जहाँ था।

प्रतीक्षा के पल……….।

अधरों पे तेरे रुकी कोई बात,
पूरी ना होगी वो आज की भी रात,
नैनों में सपने इठलाने लगेंगे,
हर क्षण मिलेगा जो इक नया सौगात।

अधूरी इच्छा,अधखुले नैनों से झाँक कर,
स्वप्न टुटने का दर्द न जाने कैसे सहा था।

प्रतीक्षा के पल……….।

सदियों ने बुझाया वो प्रेम का दीप,
हर रात काली सी हो गई,
मिलन निशा की हर क्षण,हर पल,
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे बन गई।

विरह वेदना की दर्द बन कर,
अश्रु नैनों में ही कही जम कर,
विचरण किया मै व्याकुल सा बन प्रिय,
हर रात छत पे तुमको ढ़ुँढ़ा था।

प्रतीक्षा के पल……….।
प्रतीक्षा के पल तुम्हारे-valentine contest(video)

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