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“गुजरा हुआ अनोखा एहसास-Valentine कांटेस्ट”

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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जानती हो न जाने क्यूँ आज भी कभी कभी बिन कहे तुम्हारी यादें मेरे मन को झकझोरने लगती है और न चाहते हुए भी मुझे अपने साथ घुमा लाती है,उन बीतें पलों में जो हमारे प्यार का बड़ा ही दिलकश अतीत था।फिर मै कही बैठा बैठा सोचने लगता हूँ तुम और तुम्हारे प्यार के बारे में।तुम्हारी केशुएँ मेरा सारा चेहरा ढ़ँक देती है,और उनकी भींगी भींगी खुशबु मेरे पूरे जेहन में एक गजब सा रोमांच पैदा करने लगती है।तुम्हारे हँसी की वो खनक मेरे कानों में किसी मंत्रमुग्ध संगीत सा बजने लगती है और तुम्हारा स्पर्श मुझे एहसास कराता है मेरे स्वयं के होने का।

मै नहीं चाहता फिर लौट के आने को वहाँ से,दुआ करता हूँ कि काश ये पल यही थम जाता।तुम यूँही हर दम मेरे साथ होती और मै अपने जीवन के इन सुनहरे लम्हों को समेट लेता खुद अपनी बाहों में।फिर तुम मुझे समझाने लगती क्यों कल के बारे में सोचते हो,और फिर तुम्हारे चेहरे पे भी चिंता की लकीरें दिखने लगती।मै पूछता क्या हुआ फिर तुम सहमी सी कहती हम कल जुदा तो ना हो जाएँगे ना,और मुझे अपने बाहों में लेकर पलभर को कुछ सुकुन पा लेती।मेरे काँधे पे सर टीका तुम शायद मुझसे कुछ पूछती रहती,जिसका जवाब मै भी प्यार से मुस्कुरा कर दे देता।

कभी जो तुम रुठ जाती और मुझपे गुस्सा का झुठा दिखावा करती तो मुझे बड़ा दर्द होता,फिर भी मै प्यार से तुम्हे समझाता और अपने बीच की गलतफहमियों को दूर करता।पर एक बात था जब तुम गुस्सा होती तो तुम्हारा चेहरा देखने लायक होता,बिल्कुल लाल मानों तुम्हारे अंतरंग में रक्तिम आभा उभर आयी हो।साथ होते हम तो मै कहा कुऽ कह पाता बस तुम बोले जाती और कभी मुझे शांत देख पूछती क्या तुम बोर हो गए?मै भी ना बस अपनी ही कहती रहती हूँ,और मै होंठों पे अँगुली रख मौन रहने को कहता और निहारता रहता तुम्हारी आँखों में।ऐसा लगता मै जुबान से नहीं आँखों से ही बातें कर रहा हूँ।आँखों से तुम्हारे कुछ पढ़ता और उन्हे प्यार के दो बोल बनाकर अपने होंठों पे गुनगुनाता।

आखिर में तुम्हारे जाने की घड़ी आ जाती और तुम धिरे से कहती असहाय हो खुद पर ,मुझे अब जाना होगा।ऐसे मानों समय को कोष रही हो।मै तुमसे बस दो पल और माँग लेता और फिर जब तुम्हारे जाने का समय होता तो फिर और दो पल माँगता।ऐसे ही आधे,एक घंटे बीत जाते और मुझे भी ये एहसास होता कि अब कोई बस ना चलने वाला अब तो हमे जाना ही होगा।और हम चले जाते इस वादे के साथ कि फिर मिलेंगे।

अब तुम ना होती मेरे साथ पर अब तुम्हारी यादें मुझे सताने लगती।लाख कोशिशे मेरी सोने की मुझे मात दे देती और मै छत पे आ बैठता।आसमान की ओर देखता तो एक साथी दिखता प्रेमी ह्रदय चाँद।कुछ देर उससे बातें करता उसके बारे में पूछता,कुछ अपनी बताता।चाँदनी हर रात में ऐसा लगता जैसे चाँद में तुम्हारी सूरत झाँक रही हो।कभी लगता कि तुम्हारा स्पर्श मैने पा लिया और भींगी भींगी खुशबु तुम्हारे बदन की मेरे जेहन में बसने लगी।

नींद खुल जाती और सपना टुट जाता और बिखर जाते सारे अरमान मेरे फर्श पर और जुदा होते जाते अब तो तुम्हारी यादें भी मुझसे।मुझे एहसास होता उस रात के ख्वाब पर और मेरा रोम रोम आनंदित हो उठता।नहीं चाहता मै सच की दहलीज को पार करना जहाँ न तुम हो और न अतीत की कोई भी यादें बस मै और मै ही हूँ।मै तो अब भी बस सुकुन का वो निंद ही चाहता हूँ ताउम्र जिसमे तुम हो और तुम्हारे स्पर्श का अनूठा एहसास है।आज मै बहूत दूर चला आया हूँ तुमसे ,कितने साल गुजरे और कितनी रातों के तड़पते अवसाद को मैने अपने इस दिल में जगह दी है।आज तुम्हारा प्यार और तुम्हारी यादें बस मेरे खुबसुरत गुजरे कल से बन हर पल मुझे एहसास दिला जाते है वो तुम्हारा प्यार।

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