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“प्यार का पहला एहसास‍-Valentine Contest”

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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टिमटिमाते तारों से भरी वो तमाम राते कैसे भूल सकता हूँ?वो एहसास भी बड़ा अजीब था।प्यार का पहला एहसास।बेखबर दुनिया से होता था मै।सुध ना थी किसी की बस इंतजार होता था तुम्हारा और तुम्हारे फोन का।बाते होती तो बाते होती रहती और ना होती तुम तो तुम्हारी यादे तुम्हारे साथ होने का एहसास करा जाती।

आज की ये शीतलहरी की ठंडक भरी सुबह।कुहासे ने आसमान को ढ़ँक दिया था।कुछ दिख नहीं रहा था।ये मंजर मुझे बिल्कुल तुम्हारे प्यार सा जान पड़ा,जो आज कल न जाने किस कुहासे से ढ़ँका था।

याद आया मुझे वो दिन जब पहली बार तुम्हे देखा था।तुम आयी थी मेरे घर और मै तो तुम्हे देखता ही रह गया।पता ना था उस वक्त ये आँखों ही आँखों में जो मैने रिश्ता जोड़ा था तुमसे कभी प्यार के उस मँजिल तक ले जायेगा मुझे जिसके बारे में कभी ना सोचा था।उस रोज बस देखता रहा तुम्हे और ईश्वर से प्रार्थना करता रहा कि काश तुम मिल जाती मुझे।बेजुबान होकर बहुत कुछ कहने की कोशिस क्या रँग लायी पता ना चला।तुम चली गई मेरे घर से और मै जीने लगा तुम्हारी उन दो पल के यादों के साथ।

जीवन की आपाधापी में व्यस्त होता गया मै,पर आज भी कभी कभी,कही कही तुम्हारी कमी खलती थी।बस एक मुलाकात का असर इतना रँग लायेगा,क्या पता था।तुम आ जाओगी मेरी जिंदगी में बन के बहार,क्या पता था।आज सुबह सुबह बिस्तर पर पड़ा था मै कि फोन की घंटी बजने लगी।मैने फोन उठाया पर उधर से कोई कुछ बोलता ही न था।मै जानता हूँ तुमने क्या सोचा होगा,पर मैने तुम्हारे निःशब्दता को सुन लिया।जानती हो क्यों,क्योंकि उस रोज जो पहली बार मिली थी तुम तुम्हारी आँखों ने सब कह दिया था।मौन को भी जुबान दे देते है ये नैन।मेरा दिल जोर जोर से धड़कने लगा और हिम्मत कर के तुम्हारा नाम ले लिया।तुमने हामी भर दि और उस रोज खूब हुई बाते।उस पहले दिन की सारी बाते जो अधूरी थी,होने लगी पूरी।इजहार मेरे प्यार का मेरी बातों ने कर दिया।और तुमने एहसास दिलाया मुझे उस रोज मेरा पहला प्यार।एक ऐसा एहसास जो था मेरे जीवन में पहले प्यार का एहसास।सिलसिला यूँही चलता रहा ,हम दूर होके भी हर पल करीब होते रहे एक दूसरे के।

कितने शिकवे गिले है आज तुमसे,तुम्हारे जाने के बाद।पता है तुम्हे फिर से,वही ठँडे की भोर होती है यहा।फिर से यहा दिन में जाड़े की धूप और अब भी राते होती है वैसी ही चाँदनी।बस इक तुम ही तो ना हो,तुम्हारे जाने के बाद।जिंदगी चल रही है मायूस सी,खामोश डगर भी अब हैरान सा है।गुजरते थे कभी जिन राहों से हम दोनों साथ साथ वो डगर भी मुझे अकेला देख पूँछ लेता है मुझसे कभी,तुम्हारे जाने के बाद।पुकारता हूँ,आवाज लगाता हूँ तुम्हे हर उस पल जब याद आती हो तुम।पर अब कहा पहूँचती है मेरी बाते तुम तक,तुम्हारे जाने के बाद।

आज कितने सालों के बाद भी बस वो तुम्हारा दो पल का साथ बस गया मेरे जेहन में यादों की कोई बारात बन कर।विश्वास नहीं होता कि जीवन में तुम्हारा साथ भी था कभी या बस इक सपने को सच समझ बैठा था मै।जिंदगी का रुप आज बिल्कुल बदल गया है दुनिया के मायने में,पर किसे बताऊँ कि आज भी वो एहसास यूँही बसा हुआ है मेरी यादों की पोटली में ज्यों का त्यों।जब सब चले जाते है,कोई साथ नहीं होता,तो सिर्फ तुम्हारी यादे ही तो होती है जो मेरी लेखनी से पन्नों पे उतरती रहती है।गीत बनाकर गुनगुनाता रहता हूँ और जीता रहता हूँ पुरानी यादों के सहारे।

लगता है अब ना आओगी तुम।पर क्या करुँ,ये दिल तो समझना चाहता ही नहीं।मै भूल जाता तुम्हे,पर ये दिल तुम्हे भूलता ही नहीं।आज फिर वैसी ही चाँदनी में तारों से भरी आसमान को निहारता छत पे बैठा अकेला मै।लगा ऐसा कि तुम आने वाली हो।आज फिर एक टुटते तारे से माँगा मैने बहुत कुछ जो कभी अधूरा रह गया था माँगना।चाँद की चाँदनी से रात में फिर वैसा ही मंजर मुझे एहसास दिलाता रहा,तुम्हारे न होते हुए भी हर पल तुम्हारे होने का।नजर मेरी जाने क्यों हर पल इंतजार तुम्हारा करती रहती है और चाँदनी रातों में अब भी छत पे तुम्हारा इंतजार करता हूँ मै,कि आज तुम आओगी……………….।

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