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“तुम हो अब भी-Valentine Contest”

*काव्य-कल्पना*
*काव्य-कल्पना*
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मौन मेरा स्नेह अब भी,
जो दिया,तुमसे लिया मै।

प्यार मेरा चुप है अब भी,
क्यों किया,जो है किया मै।

भूल से हुई इक खता,
मैने रुलाया खुब तुमको,
खुद भी रोया,
कह ना पाया,
नैन मेरा ढ़ुँढ़े उनको।

तुम कही हो,मै कही हूँ,
तुम ना मेरी,मै नहीं हूँ।

पर है वैसा ही सुहाना,
प्यार का मौसम तो अब भी।

साथ तेरा छोड़ दामन,
प्यार का बंधन छुड़ाया,
रुठ चुकी है खुशियाँ अपनी,
प्यार हमारा लुट न पाया।

ख्वाबों में फिर हर रात ही,
न जाने क्यों आती हो तुम तो अब भी।

राहे मुझसे पुछती है,
है कहा तेरा वो अपना,
साथ जिसके रोज था तु,
खो गया क्यों बन के सपना।

तु गया है भूल या उसने ही दामन है चुराया,
पर मेरे जेहन में वैसी ही,
कुछ प्यारी यादें सीमटी है अब भी।

माना है मैने कि तुम हो दूर मेरे,
दूर हो के पास हो तुम साथ मेरे।

मै तुम्हे अब देखता हूँ आसमां में,
चाँद में,तारों में,
हर जगह जहा में।

सब में बस तेरी ही तस्वीर दिखती,
हर तस्वीर तुम्हारी है ये पूछती।

मै नहीं तेरी प्रिया कर ना भरोसा,
दूर रह वरना तु खायेगा फिर धोखा,
मै उन्हें बस ये ही कह के टालता हूँ,
साये से तेरा अपना वजूद निकालता हूँ।

कोई ना जाने किसी को क्या पता है?
मेरे दिल के घर में तो तुम हो अब भी।

बीती हुई हर बात में,
अपनी सभी मुलाकात में,
थे चंद सपने जो थे जोड़े तेरे मेरे साथ ने।

उन चाँदनी हर रात में,
भींगी हुई बरसात में,
मेरे आज में और कल में,
दबी दबी सी जिक्र तुम्हारी,
एहसास दिलाती तुम हो अब भी।

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